जसविंदर भल्ला: हंसी की वो आवाज़, जो हमेशा के लिए खामोश हो गई

नई दिल्ली। पंजाबी सिनेमा और कॉमेडी की दुनिया में गहरी छाप छोड़ने वाले अभिनेता जसविंदर भल्ला अब हमारे बीच नहीं रहे। शुक्रवार सुबह मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। 65 वर्ष की उम्र में जीवन की अंतिम पारी खेलते हुए वे एक लंबी बीमारी से जूझ रहे थे। उनके जाने से सिर्फ एक कलाकार नहीं, बल्कि एक ज़िंदादिल इंसान और हंसी की वह मूरत हमसे जुदा हो गई, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

एक ऐसा कलाकार, जो सिर्फ हंसाता नहीं था, जीना सिखाता था

भल्ला साहब का अभिनय सिर्फ कॉमेडी तक सीमित नहीं था — वह अपने हर किरदार में ज़िंदगी घोल देते थे। चाहे फिल्म ‘कैरी ऑन जट्टा’ हो या ‘जिंद जान’, उनका अंदाज़, उनकी बोली, और वो चुटीले संवाद ऐसे थे जो सीधे दिल में उतरते थे। उन्होंने हास्य को एक ज़िम्मेदारी की तरह निभाया — समाज को हंसाते हुए आईना दिखाने का काम किया।

किताबों से कैमरे तक का सफर

4 मई 1960 को पंजाब के लुधियाना जिले के दोराहा नामक कस्बे में जन्मे जसविंदर भल्ला ने अपने करियर की शुरुआत एक प्रोफेसर के तौर पर की थी। शिक्षा उनका पहला प्यार था, लेकिन मंच ने उन्हें बुलाया और उन्होंने 1988 में ‘छनकटा 88’ के ज़रिए कॉमेडी की दुनिया में कदम रखा। जल्दी ही वे मंच से पर्दे तक पहुंचे और ‘दुल्ला भट्टी’ से बड़े पर्दे पर बतौर अभिनेता अपनी पहचान बनाई।


जसविंदर भल्ला अब इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उनकी फिल्में, उनके किरदार, और वो हँसी — हमेशा ज़िंदा रहेंगे। उन्होंने पंजाबी सिनेमा को जो कुछ दिया, वह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।

श्रद्धांजलि, उस चेहरे को जिसे देख हम हँसते थे — आज वही चेहरा आँखें नम कर गया।

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