भागलपुर से रणजी ट्रॉफी तक – सचिन ने मेहनत से लिखी अपनी कहानी

बिहार के छोटे से शहर भागलपुर से निकला एक युवा खिलाड़ी आज रणजी ट्रॉफी तक पहुँच चुका है। उसका नाम है सचिन — एक ऐसा लड़का जिसने हालातों से लड़कर, अपने सपनों को सच्चाई में बदला। उसकी कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है जो छोटे शहर से बड़े सपने देखता है।

छोटी गलियों से बड़े मैदान तक

सचिन का क्रिकेट सफर स्कूल के छोटे टूर्नामेंट्स से शुरू हुआ।
बिना किसी खास सुविधा के, लोकल मैदानों पर घंटों अभ्यास करना उसका रोज़ का हिस्सा था। लोगों ने ताना भी मारा — “बिहार से कोई खिलाड़ी कहाँ तक जा पाएगा?” लेकिन सचिन ने जवाब मैदान पर दिया।

“मुझे पता था कि पहचान जगह से नहीं, मेहनत से बनती है।” -सचिन

परिवार का साथ, शहर का गर्व

सचिन के माता-पिता ने कभी उसे रोका नहीं। उन्होंने उसके सपने को अपना सपना बना लिया। कोचों और दोस्तों ने हर गलती पर उसे सिखाया, और हर जीत पर उसका हौसला बढ़ाया।
आज भागलपुर का हर क्रिकेट प्रेमी उस पर गर्व करता है।

रणजी का कॉल – सपने का सच होना

एक सुबह जब रणजी ट्रॉफी चयन का कॉल आया, तो सचिन कुछ पल के लिए शांत रह गया। आँखों में आँसू, पर दिल में गर्व था। “यह वही सपना था जो मैं हर रात आँखें बंद करके देखता था।” उस पल ने न सिर्फ सचिन की ज़िंदगी बदली, बल्कि पूरे भागलपुर को गर्व का मौका दिया।

नई मंज़िल, नया इरादा

अब सचिन का लक्ष्य और ऊँचा है — बिहार का नाम राष्ट्रीय स्तर पर रोशन करना। उन्होंने कहा ये सिर्फ शुरुआत है: मैं जानता हूं, ये सफर अभी लंबा है। अब मैं और ज्यादा मेहनत करूंगा, ताकि बिहार का नाम हर मैच में गूंज उठे। मुझे छोटी सी पहचान नहीं चाहिए, मुझे “बिहार का सचिन” बनना है – जो नए खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बने।

सचिन की कहानी साबित करती है कि *प्रतिभा जगह नहीं देखती।अगर हिम्मत और मेहनत सच्ची हो, तो भागलपुर जैसी मिट्टी से भी सितारे निकलते हैं।

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