खेल मोबाइल & गैजेट्स टेक मनोरंजन दुनिया
---Advertisement---

बिहार चुनाव में मोबाइल नंबरों की राजनीति: आखिर सबके पास हमारा नंबर आया कहाँ से?

On: November 1, 2025 12:57 PM
Follow Us:
---Advertisement---

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण से पहले एक सवाल हर नागरिक के मन में गूंज रहा है —आख़िर सभी राजनीतिक दलों को हमारे मोबाइल नंबर कहाँ से मिल गए?”चुनाव के इन दिनों में, राज्यभर के लोगों को रोजाना दर्जनों कॉल और एसएमएस मिल रहे हैं — कभी किसी पार्टी के प्रचार के नाम पर, तो कभी किसी उम्मीदवार के समर्थन में। लेकिन सवाल ये नहीं कि कौन-सी पार्टी प्रचार कर रही है, असली सवाल ये है कि निजी मोबाइल डेटा किसने दिया?

डेटा गोपनीयता पर सवाल

भारत में हर नागरिक का मोबाइल नंबर एक निजी सूचना है। इसे बिना अनुमति किसी भी संगठन या व्यक्ति को देना Information Technology Act और TRAI के नियमों का उल्लंघन माना जाता है।फिर भी, ऐसा लग रहा है कि बिहार में हर मतदाता का नंबर राजनीतिक दलों तक पहुँच चुका है।

क्या ये डेटा टेलीकॉम कंपनियों से लीक हुआ?
या फिर किसी सरकारी अथवा निजी सर्वे के जरिए इकट्ठा किया गया और राजनीतिक उपयोग के लिए बेच दिया गया?
इन सवालों का जवाब अब तक किसी सरकारी एजेंसी या आयोग ने स्पष्ट नहीं दिया है।टेलीकॉम ऑपरेटर का दायित्व है कि वह ग्राहकों का डेटा सुरक्षित रखे। वहीं सरकार की एजेंसियाँ — DoT (Department of Telecommunications), TRAI, और Election Commission — डेटा सुरक्षा और चुनावी पारदर्शिता की निगरानी के लिए उत्तरदायी हैं।
फिर भी, अब तक किसी भी संस्था ने यह नहीं बताया कि लाखों नंबरों तक ये प्रचार संदेश कैसे पहुँच रहे हैं।

भागलपुर, पटना, गया, सिवान और मधुबनी जैसे ज़िलों के नागरिकों ने बताया कि उन्हें दिन में कई बार अलग-अलग नंबरों से कॉल और मैसेज आते हैं —
कहीं “फलां उम्मीदवार को वोट दें”, तो कहीं “हमारे विकास वादे सुनें” जैसी बातें।अक्सर ये संदेश अनजान नंबरों या ऑटो-कॉल सिस्टम से भेजे जाते हैं।

अब बड़ा सवाल यही है —अगर डेटा लीक हुआ है तो जांच क्यों नहीं हुई?अगर यह “कानूनी प्रचार” है तो नागरिकों की सहमति कहाँ ली गई?और अगर यह सब चुनावी रणनीति का हिस्सा है, तो क्या लोकतंत्र में निजता की कोई कीमत नहीं बची?लोकतंत्र में नागरिक की निजता ही उसकी असली पहचान है।चुनाव प्रचार के नाम पर डेटा का इस तरह से दुरुपयोग सिर्फ गोपनीयता का हनन नहीं, बल्कि लोकतंत्र की पारदर्शिता पर भी चोट है।

अब ज़रूरत है कि —

  • सरकार और निर्वाचन आयोग इस मुद्दे पर औपचारिक जांच शुरू करें।
  • डेटा ब्रोकर और ऑपरेटर नेटवर्क्स की भूमिका की समीक्षा हो।
  • और सबसे अहम, नागरिकों को यह अधिकार मिले कि उनका मोबाइल डेटा बिना अनुमति के किसी को न मिले।

Mission Aditya

Founder – KhabarX | Student | Patriotic Youth Ambassador (VPRF) 🇮🇳 Amplifying unheard stories, questioning silence, and building journalism powered by truth, tech & youth. Purpose-led. Change-driven.

Join WhatsApp

Join Now

Leave a Comment