ECHS में जेनरिक दवाइयाँ: सस्ती सुविधा या गुणवत्ता पर समझौता?

पूर्व सैनिकों को बेहतर और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएँ देने के लिए शुरू की गई ECHS (Ex-Servicemen Contributory Health Scheme) आज लाखों परिवारों का सहारा है। पर हाल के वर्षों में एक सवाल बार-बार उठने लगा है — सर्कार जानते हुए भी ECHS में जेनरिक दवाइयाँ ही क्यों देती है? क्या यह नीति वास्तव में जनहित में है या मरीजों के स्वास्थ्य पर असर डाल रही है?

जेनरिक दवाइयाँ क्या होती है

जेनरिक दवाइयाँ वे होती हैं जिनमें वही सक्रिय तत्व (Active Ingredient) होता है जो किसी ब्रांडेड दवा में पाया जाता है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि जेनरिक दवा किसी बड़े ब्रांड नाम के तहत नहीं बेची जाती और उसकी मार्केटिंग लागत बहुत कम होती है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी मरीज को Crocin दी जाती है तो उसका जेनरिक संस्करण “Paracetamol 500 mg” कहलाएगा — दोनों का असर सिद्धांततः एक जैसा होना चाहिए।

Generic medicines देने के पीछे मुख्य कारण

  1. लागत नियंत्रण (Cost Control):
    सरकार का मकसद है कि स्वास्थ्य सेवा ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचे। जेनरिक दवाएँ ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 50–90% तक सस्ती होती हैं। इससे ECHS जैसी योजनाएँ आर्थिक रूप से टिकाऊ बनती हैं।
  2. एक ही प्रभाव, कम खर्च में:
    दवा नियंत्रक संस्था DCGI (Drug Controller General of India) के मुताबिक, जेनरिक दवाओं का composition, dose और efficacy ब्रांडेड दवाओं के समान होता है। यानी इलाज में कोई वैज्ञानिक अंतर नहीं होना चाहिए।
  3. ‘Make in India’ और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा:
    सरकार चाहती है कि भारतीय दवा कंपनियाँ सस्ती और गुणवत्तापूर्ण जेनरिक दवाओं का उत्पादन बढ़ाएँ ताकि देश की आयात पर निर्भरता घटे।
  4. फार्मा लॉबी पर नियंत्रण:
    ब्रांडेड दवाओं की कंपनियाँ डॉक्टरों को अपने उत्पाद लिखने के लिए प्रोत्साहन देती हैं। जेनरिक दवा नीति इस प्रवृत्ति को सीमित करती है और पारदर्शिता बढ़ाती है।कई ECHS लाभार्थी शिकायत करते हैं कि कुछ जेनरिक दवाएँ अपेक्षित प्रभाव नहीं देतीं। यह समस्या अक्सर गुणवत्ता नियंत्रण की कमी, अनियमित सप्लाई, और भरोसे की कमी के कारण होती है।कुछ छोटे निर्माताओं द्वारा बनी दवाओं में bioavailability का स्तर कम पाया जाता है, जिससे शरीर में दवा का असर देर से या कमजोर होता है।

इसी वजह से कई बार मरीज और डॉक्टर दोनों ही ब्रांडेड दवाओं पर ज्यादा भरोसा करते हैं।

क्वालिटी की निगरानी क्यों ज़रूरी है

ECHS जैसी योजनाओं में सरकार की मंशा गलत नहीं है, लेकिन सफलता का आधार है — क्वालिटी एश्योरेंस।
अगर हर जेनरिक दवा की गुणवत्ता, निर्माण स्थल, और परीक्षण रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से मॉनिटर हो, तो भरोसा अपने आप बढ़ेगा।

साथ ही, ECHS स्टॉक में दवा के निर्माता का नाम, बैच नंबर और expiry date स्पष्ट रूप से दर्शाना अनिवार्य होना चाहिए। यह पारदर्शिता मरीजों के अधिकारों की रक्षा करती है।

अगर ECHS में दी गई जेनरिक दवा असर न करे तो क्या करें?

  1. तुरंत डॉक्टर को सूचित करें:
    यदि दवा असर नहीं कर रही है या साइड इफेक्ट दे रही है, तो तुरंत ECHS डॉक्टर को बताएं। यह शिकायत लिखित रूप में दर्ज कराएँ।
  2. Substitute या Brand Change की मांग करें:
    ECHS के नियमों के तहत डॉक्टर मरीज के हित में ब्रांडेड दवा का विकल्प prescribe कर सकते हैं — बशर्ते मेडिकल कारण उचित हो।
  3. OIC (Officer-in-Charge) को रिपोर्ट करें:
    संबंधित ECHS Polyclinic के अधिकारी को शिकायत लिखित रूप में दें।
    रिपोर्ट में दवा का नाम, बैच नंबर, प्रभाव की अवधि और डॉक्टर की राय शामिल करें।
  4. Documentation रखें:
    हर मरीज को अपनी प्रिस्क्रिप्शन, दवा की पर्ची और रिपोर्ट्स की कॉपी रखनी चाहिए।
    इससे भविष्य में मेडिकल बोर्ड या शिकायत समिति के सामने मजबूत आधार बनता है।

विश्वास बहाली और आगे का रास्ता

सस्ती दवा देना बुरा नहीं — सस्ती और असरदार दवा देना ही असली उद्देश्य है।
सरकार को चाहिए कि ECHS में जेनरिक दवाओं की सप्लाई चेन, गुणवत्ता परीक्षण और रिपोर्टिंग सिस्टम को और मजबूत बनाए।
साथ ही, हर लाभार्थी को यह जानकारी दी जाए कि उसे कौन सी दवा मिल रही है, उसका निर्माता कौन है, और उसकी गुणवत्ता कैसे सुनिश्चित की गई है।

यदि इन कदमों को सही तरीके से लागू किया जाए, तो जेनरिक नीति न केवल खर्च घटा सकती है, बल्कि पूर्व सैनिकों का भरोसा भी वापस ला सकती है।ECHS में जेनरिक दवाएँ देने का निर्णय नीति की दृष्टि से सही है, पर इसका असली उद्देश्य तभी पूरा होगा जब क्वालिटी और जवाबदेही दोनों साथ चलें।
पूर्व सैनिकों की सेवा करना केवल कर्तव्य नहीं — सम्मान का विषय है।
इसलिए हर गोली, हर इलाज में वही मानक और विश्वास होना चाहिए जो उन्होंने देश की सेवा करते समय दिखाया था।

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