देश की राजनीति में “मुफ्त की योजनाएं” (Freebies) अब एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुकी हैं। चुनाव आते ही दल जनता को मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, बेरोज़गारों और महिलाओं के लिए भत्ता, यहाँ तक कि लैपटॉप और गैजेट तक देने का वादा करते हैं। लेकिन इस पर लगातार बहस भी चलती रही है — आखिर मुफ्त की राजनीति राज्य और जनता पर कितना असर डालती है?
पक्ष में तर्क
समर्थकों का मानना है कि मुफ्त की योजनाएं जनता को सीधा लाभ देती हैं।
- चुनावी समय में लोगों को इन वादों से राहत की उम्मीद रहती है।
- पड़ोसी राज्यों में मिल रहे लाभ को देखकर, चुनावी राज्यों के लोग भी वही मांग करने लगते हैं।
- गरीब और वंचित वर्ग को इससे तुरंत सहारा मिलता है।
विपक्ष में तर्क
विरोध करने वालों का कहना है कि मुफ्त की राजनीति का असर लंबे समय में नुकसानदायक है।
- इससे राज्य के खजाने पर भारी बोझ पड़ता है।
- संसाधन सीमित होते हैं, और मुफ्त योजनाओं से विकास कार्य प्रभावित होते हैं।
- बिना बहस के जल्दबाजी में की गई घोषणाएं अक्सर असल लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पातीं।
क्यों ज़रूरी है बहस?
विशेषज्ञों का मानना है कि राजनीतिक दलों को जनता के लिए स्थायी समाधान तैयार करना चाहिए —
- रोज़गार के अवसर बढ़ाना
- शिक्षा और स्वास्थ्य पर निवेश
- पारदर्शी नीतियां बनाना
- भ्रष्टाचार और लीकेज पर रोक लगाना
अगर ये कदम उठाए जाएं तो मुफ्त की योजनाओं की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।
मुफ्त की राजनीति चुनाव में असर तो डालती है, लेकिन यह असर अल्पकालिक होता है। दीर्घकालिक विकास के लिए रोजगार और शिक्षा जैसी स्थायी नीतियों पर फोकस करना ही असली समाधान है।
Image Credit: Dainik Jagran (For Representation Only)