लक्ष्मण रेखा खींची गई — अमित शाह ने कहा: बात करने के लिए क्या है?

“बातचीत का सवाल ही नहीं उठता”: अमित शाह ने बस्तर में नक्सलियों के लिए सीमारेखा खींची

बस्तर, (संवाद) — केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ के बस्तर में खरी-खरी कह दी और माओवादी कम्याओं के बीच चल रहे अंदरूनी मतभेद के बीच यह स्पष्ट कर दिया कि केंद्र और राज्य सरकारें विकास-आधारित कार्रवाई जारी रखेंगी तथा माओवादियों के सामने बातचीत का विकल्प नहीं रहेगा — उनके लिये एकमात्र रास्ता हथियार डालना ही है।

शाह ने कहा कि राज्य और केंद्र दोनों बस्तर तथा अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं और उन्होंने बातचीत के बजाय आत्मसमर्पण और पुनर्वास को ही विकल्प के रूप में पेश किया। उनके बयानों में यह संदेश भी साफ़ था कि जिन लोगों ने “बातचीत” की बात की, उनसे वह दोहरा कर पूछना चाहते हैं — “बात करने के लिए क्या है?” शाह ने कहा कि सरकार ने लाभदायक और आकर्षक आत्मसमर्पण रणनीति स्थापित की है और सुरक्षा बल—सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस—मिलकर उन लोगों का स्वागत करने तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए तैयार हैं।

उन्होंने कहा, “यदि आप बस्तर में शांति भंग करने के लिए हथियारों का इस्तेमाल करते हैं तो जवाब मिलेगा। देश से नक्सलवाद को खत्म करने की तारीख मार्च 2026 तय की गई है।” इस अंदाज़ ने साफ़ संदेश दिया कि केंद्र का रुख सख्त है और नक्सलियों के भीतर जारी रस्साकशी—जो कुछ कमांडरों द्वारा सशस्त्र संघर्ष बंद करने के पक्ष में पत्रों के बाद उभरी है—के बावजूद कोई नरमी नहीं बरती जाएगी।

माओवादी अंदरूनी टकराव और सरकार की प्रतिक्रिया

12 सितंबर को सीपीएम (माओवादी) के वैचारिक नेता व प्रमुख प्रवक्ता मल्लोजुला वेणुगोपाल राव द्वारा भेजे गए पत्र में सशस्त्र संघर्ष समाप्त करने का संकेत मिलने के बाद संगठन के भीतर मतभेद उभर कर आए। कुछ माओवादी कमांडरों ने राव के कदम पर नाराज़गी जताई और कहा कि उन्होंने यह अकेले किया है—और वे सशस्त्र संघर्ष के साथ जारी रहेंगे। ऐसी स्थिति में शाह की टिप्पणियाँ उसी आंतरिक उथल-पुथल के संदर्भ में आई हैं।

शाह ने आदिवासी और स्थानीय लोगों को भरोसा दिलाया कि केंद्र और राज्य विकास और सुरक्षा दोनों मोर्चों पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बस्तर के प्रत्येक गाँव में बिजली, बहता पानी, सड़कें, शौचालय, पांच लाख रुपये का बीमा और 5 किलो भोजन जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं। साथ ही मुफ्त चावल और धान खरीदने जैसी योजनाओं का भी ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बस्तर पिछड़ा इसलिए दिखता है क्योंकि नक्सलवाद ने वहां विकास को बाधित किया है।

आत्मसमर्पण नीति और प्रोत्साहन

शाह ने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार की आत्मसमर्पण नीति असरदार है और उसे राज्य के मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री समेत मंत्रियों द्वारा तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि जिस दिन कोई गाँव नक्सल-मुक्त घोषित होगा, उस दिन छत्तीसगढ़ सरकार वहाँ विकास गतिविधियों के लिए 1 करोड़ रुपये प्रदान करेगी। उन्होंने स्थानीय समुदायों से अपील की कि नक्सल विचारधारा में फंसे युवाओं को राज़ी करने में मदद करें ताकि वे हथियार छोड़कर समाज में फिर से जुड़ सकें।

त्योहार और भावना

बस्तर में राज्य के दशहरा उत्सव के 75 दिवसीय आयोजन के दौरान भी शाह ने स्थानीय श्रद्धा और समर्थन का ज़िक्र किया — लोग मत्था टेकने आए और सुरक्षा बलों के साथ मिलकर क्षेत्र को “लाल आतंक” से मुक्त करने की प्रार्थना की गयी। शाह ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से यह आश्वासन भी दोहराया कि 31 मार्च, 2026 तक नक्सल गतिविधियाँ स्थानीय लोगों की प्रगति या अधिकारों में बाधा नहीं डाल पाएंगी। साथ ही उन्होंने यह स्वीकार किया कि अभी बहुत काम बाकी है पर विश्वास जताया कि यह उद्देश्य पूरा हो जाएगा।

केंद्र ने स्पष्ट कर दिया है कि वह नक्सलवाद को केवल सुरक्षा चुनौती के रूप में नहीं देखता, बल्कि इसे विकास की राह में प्रमुख बाधा मानता है। अमित शाह के कड़े शब्दों ने यह संकेत दिया कि अब न केवल बाहरी दबाव बल्कि आंतरिक दलबदल के बावजूद भी सरकार का रुख सख्त और स्पष्ट है: माओवादियों के लिए बातचीत कोई विकल्प नहीं — हथियार डालिए, आत्मसमर्पण की नीति अपनाइए और विकास के लाभ उठाइए।

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