Rajdev Ranjan Murder Case: तीन आरोपियों को बरी, CPJ ने कहा- पत्रकारों की सुरक्षा पर खतरा

2016 में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के मामले में तीन आरोपियों को बरी करने के फैसले पर अंतरराष्ट्रीय संगठन Committee to Protect Journalists (CPJ) ने गंभीर चिंता जताई है। संगठन ने बिहार सरकार और केंद्र की एजेंसियों से इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने और पत्रकार के परिवार को सुरक्षा देने की अपील की है।

CPJ की अपील: न्याय सुनिश्चित किया जाए

CPJ के भारत प्रतिनिधि कुणाल मजूमदार ने कहा:

बिहार सरकार और केंद्रीय जांच एजेंसियों को राजदेव रंजन के लिए न्याय की लड़ाई जारी रखनी चाहिए और उनके परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। सात साल की सुनवाई के बाद सबूतों की कमी के आधार पर तीन आरोपियों को बरी करना उन लोगों के लिए खतरनाक संदेश है जो पत्रकारों को चुप कराने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करते हैं।

किसे मिली राहत और कौन दोषी करार

  • बरी हुए आरोपी:
    • लड्डन मियां (मुख्य संदिग्ध, पुलिस के अनुसार शाहाबुद्दीन का करीबी)
    • दो अन्य आरोपी (नाम अदालत ने सबूतों की कमी के कारण खारिज किए)
  • दोषी करार दिए गए:
    • विजय कुमार गुप्ता
    • सोनू कुमार गुप्ता
    • रोहित कुमार सोनी

तीनों को रंजन की हत्या में शामिल पाए जाने पर दोषी ठहराया गया। वहीं, एक सातवां आरोपी जो उस समय नाबालिग था, उसका मामला अलग चल रहा है।

शाहाबुद्दीन का नाम और लड्डन मियां की भूमिका

पुलिस का मानना था कि लड्डन मियां, दिवंगत बाहुबली नेता मो. शाहाबुद्दीन का करीबी था और हत्या की साजिश में मुख्य भूमिका निभाई थी।

  • शाहाबुद्दीन का नाम भी आरोप पत्र में था।
  • 2021 में शाहाबुद्दीन की COVID-19 से मौत हो गई, उस समय वह हत्या के दूसरे केस में उम्रकैद की सजा काट रहा था।

राजदेव रंजन कौन थे?

  • हिंदुस्तान अखबार के सीवान ब्यूरो चीफ़।
  • 13 मई 2016 को रेलवे स्टेशन के पास गोली मारकर हत्या की गई थी।
  • रंजन ने लंबे समय तक अपराध-राजनीति गठजोड़ और सीवान जिले की आपराधिक गतिविधियों पर रिपोर्टिंग की थी।

रंजन की पत्नी आशा देवी ने कहा: मैं गहरे सदमे और निराशा में हूं। फैसले से परिवार को डर है कि अब हमें उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है।

भारत की स्थिति और वैश्विक चिंता

  • CPJ की 2024 Global Impunity Index में भारत 13वें स्थान पर रहा, यानी यहां पत्रकारों की हत्या करने वालों के बच निकलने की संभावना अधिक है।
  • इस ताज़ा फैसले ने एक बार फिर पत्रकारों की सुरक्षा और न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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