खेल मोबाइल & गैजेट्स टेक मनोरंजन दुनिया
---Advertisement---

बिहार की राजनीति : जब सत्ता बदली, मगर सवाल वही रहे बिहार की राजनीति का नया दौर

On: November 4, 2025 10:51 PM
Follow Us:
---Advertisement---

1977 की जनता लहर के बाद भारत ने एक नई सुबह देखी थी। लेकिन इस सुबह के साथ कुछ लंबी परछाइयाँ भी थीं। जनता पार्टी टूटी, सरकारें बदलीं — और बिहार एक बार फिर राजनीतिक अनिश्चितता के बीच खड़ा था।इसी अराजकता में जन्म लेने वाले थे वो तीन चेहरे जिन्होंने आने वाले दशकों तक बिहार की राजनीति की दिशा तय की — लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी।1980 में इंदिरा गांधी की वापसी के साथ बिहार में फिर कांग्रेस का राज आया। मुख्यमंत्री बने जगन्नाथ मिश्रा। लेकिन यह दौर कांग्रेस के लिए भी सहज नहीं था।भ्रष्टाचार, जातीय हिंसा और प्रशासनिक कमजोरी बिहार की पहचान बनने लगी।मिश्रा सरकार का “प्रेस बिल” जैसा फैसला, जिसने मीडिया की आज़ादी को चोट पहुंचाई, जनता के भीतर असंतोष का कारण बना।इसी समय बिहार की धरती पर नए राजनीतिक बीज अंकुरित हो रहे थे — जाति और सामाजिक पहचान की राजनीति के रूप में।

भागलपुर दंगे और कांग्रेस की गिरावट

1989 में बिहार ने अपनी सबसे दर्दनाक त्रासदी देखी — भागलपुर दंगे।हजारों लोग मारे गए, लाखों बेघर हुए। प्रशासन की विफलता और पक्षपात के आरोपों ने कांग्रेस की साख मिट्टी में मिला दी।मुसलमान, जो दशकों तक कांग्रेस के साथ खड़े थे, अब उससे पूरी तरह दूर हो गए।इसी खालीपन में उभरने लगे एक नए नेता — लालू प्रसाद यादव, जिनकी आवाज़ में गांव की सच्चाई थी और जिनकी भाषा में जनता का भरोसा।

लालू का उदय: जनता की ज़मीन से सत्ता की कुर्सी तक

लालू की राजनीति किताबों से नहीं, मिट्टी और चौपालों से निकली थी।उन्होंने “एमवाई समीकरण” — मुस्लिम + यादव — गढ़ा, जो आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति की धुरी बन गया।1990 के विधानसभा चुनावों में जनता दल ने सत्ता में वापसी की।तीन दावेदारों में लालू ने सबको मात दी और 10 मार्च 1990 को बने बिहार के मुख्यमंत्री।गांधी मैदान, जहाँ 16 साल पहले वे जेपी के साथ “संपूर्ण क्रांति” का नारा लगा रहे थे,वहीं अब उनके शपथ ग्रहण का मंच बना।यह इतिहास का पूरा चक्र था — छात्र नेता से मुख्यमंत्री तक।

सत्ता का नया चेहरा: मंडल बनाम मंदिर

90 के दशक की शुरुआत में देश दो लहरों में बंट चुका था — मंडल आयोग और राम मंदिर आंदोलन।बी.पी. मंडल की रिपोर्ट के अनुसार पिछड़ी जातियों को 27% आरक्षण मिला, और लालू ने इसे अपनी राजनीतिक आत्मा बना लिया।अब सत्ता सवर्णों की नहीं, पिछड़ों की है।” — लालू का यह बयान उस दौर की राजनीति का घोषणापत्र बन गया।दूसरी ओर, उत्तर भारत में राम मंदिर आंदोलन हिंदू एकता की नई राजनीति लेकर आया।बिहार दोनों धाराओं के बीच टकराव का मैदान बन गया — जहाँ जाति और धर्म की राजनीति पहली बार खुलकर भिड़ीं।इसी दौर में दो और चेहरे बिहार की राजनीति में तेजी से उभर रहे थे — नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी।दोनों जेपी आंदोलन की उपज थे, लेकिन रास्ते अलग थे।नीतीश विकास और नीति की राजनीति की बात करते थे।वहीं सुशील मोदी भाजपा के संगठन और हिंदू विचारधारा के तेज़ प्रवक्ता बन रहे थे।लालू जहाँ जनसंघर्ष के प्रतीक बने, वहीं नीतीश और मोदी प्रशासनिक सुधार और स्थिरता की राजनीति के चेहरे बन गए।

लालू राज: जनता का नेता या जंगलराज की शुरुआत?

1990 से 1997 तक का दौर बिहार की राजनीति के सबसे बहसयोग्य अध्यायों में से एक है।लालू की लोकप्रियता अपार थी — “भूरा बाल साफ करो” जैसे नारे जातीय जागरूकता का प्रतीक बने।लेकिन धीरे-धीरे वही लालू, जो सत्ता के खिलाफ आंदोलन की आवाज़ थे, अब सत्ता के प्रतीक बन गए।भ्रष्टाचार, अपराध और प्रशासनिक पतन ने बिहार को देश की सुर्खियों में ला दिया।“जंगलराज” शब्द इसी दौर में जन्मा।लालू का शासन जनता के दिल और विरोधियों के शब्दों — दोनों में दर्ज हो गया।

नीतीश बनाम लालू: राजनीति का नया मोड़

1994 में नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बनाई।यही वह क्षण था जिसने बिहार की राजनीति को दो धाराओं में बाँट दिया —एक तरफ जातीय सशक्तिकरण की राजनीति (लालू),दूसरी तरफ सुशासन और विकास की राजनीति (नीतीश)।यही विभाजन आने वाले वर्षों में बिहार की पहचान बनने वाला था।1997 में चारा घोटाला फूटा।लालू पर आरोप लगे, और उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया।बिहार ने पहली बार देखा कि सत्ता अब पारिवारिक उत्तराधिकार में बदल चुकी थी।लेकिन यह अंत नहीं था।यह वह मोड़ था जहाँ से नीतीश कुमार ने अपनी सबसे मजबूत रणनीति शुरू की — सुशासन और विकास की राजनीति।यहीं से शुरू हुआ बिहार की राजनीति का नया युग।

Mission Aditya

Founder – KhabarX | Student | Patriotic Youth Ambassador (VPRF) 🇮🇳 Amplifying unheard stories, questioning silence, and building journalism powered by truth, tech & youth. Purpose-led. Change-driven.

Join WhatsApp

Join Now

Leave a Comment