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बिहार की राजनीति : बुद्ध की धरती से सत्ता की गलियों तक | KhabarX Special Report

On: November 4, 2025 10:51 PM
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बिहार—एक ऐसा राज्य जो सिर्फ भारत का हिस्सा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है।यह वही मिट्टी है जहाँ बुद्ध ने करुणा सीखी, जहाँ अशोक ने तलवार छोड़ धर्म अपनाया, और जहाँ राजेंद्र प्रसाद ने भारत के संविधान को अपनी स्याही से आकार दिया।लेकिन यह कहानी सिर्फ ज्ञान और शांति की नहीं—यह है सत्ता, संघर्ष और स्वाभिमान की कहानी।

बिहार की सभ्यता उतनी ही पुरानी है जितना खुद भारतीय इतिहास।सारण ज़िले के चिरांद से मिले 10,000 ईसा पूर्व के पुरातात्विक प्रमाण बताते हैं कि इस भूमि ने सभ्यता का आरंभ देखा।मिथिला, मगध और अंग—तीनों प्राचीन जनपदों ने भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक नींव रखी।मिथिला के राजा जनक के दरबार से लेकर पाटलिपुत्र की राजगद्दी तक, बिहार सदियों से सत्ता का केंद्र रहा है।

जब चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की नीति से नंद वंश को हराया, तब बिहार सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि साम्राज्य बन गया।मौर्य वंश—भारत के पहले अखिल भारतीय साम्राज्य का प्रतीक।चंद्रगुप्त, बिंदुसार और फिर सम्राट अशोक—जिन्होंने इस धरती को दुनिया के नक्शे पर ‘बुद्ध की भूमि’ के रूप में दर्ज किया।अशोक ने सारनाथ से वैशाली तक स्तूप बनाए, और बुद्ध के संदेश को सीमाओं से परे पहुंचाया।भारत का राष्ट्रीय प्रतीक—अशोक स्तंभ—आज भी बिहार की उस गौरवगाथा की गूंज है।

लेकिन इतिहास वहीं नहीं रुका।
शुंग, कन्व और गुप्त साम्राज्य आए—और बिहार ने “Golden Age of India” देखा।गुप्त युग में विज्ञान, गणित और साहित्य ने वो ऊँचाइयाँ छुईं जो आने वाले हज़ार सालों तक मिसाल बनी रहीं।पर इस उजाले के बाद अंधेरा भी आया।दिल्ली सल्तनत के बख्तियार खिलजी ने नालंदा और विक्रमशिला जैसे ज्ञान के मंदिरों को राख में बदल दिया।
कहा जाता है कि नालंदा की पुस्तकालयें महीनों तक जलती रहीं—और उसी धुएं में बिहार का बौद्धिक वैभव खो गया।

इसके बाद सत्ता बदली, नाम बदले।शेरशाह सूरी ने सासाराम से उठकर ‘ग्रैंड ट्रंक रोड’ बनाई, जो आज भी भारत की नसों में बहती है।फिर मुगल आए—और बिहार को बंगाल के साथ जोड़ दिया गया।पटना का नाम “अजीमाबाद” पड़ा, पर जनता का दर्द वही रहा।1764 में बक्सर की लड़ाई ने इतिहास का रुख मोड़ दिया—ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत ने भारत की आज़ादी छीन ली, और बिहार उनकी लूट का पहला केंद्र बना।

ब्रिटिश राज में बिहार की उपजाऊ मिट्टी को शोषण का प्रतीक बना दिया गया।किसानों को ज़बरदस्ती नील की खेती करनी पड़ी, और ज़मींदारी ने गरीबी को पीढ़ी दर पीढ़ी बो दिया।1912 तक बिहार की कोई अलग पहचान नहीं थी—वह बंगाल प्रेसिडेंसी का हिस्सा था।लेकिन उसी साल, पटना को राजधानी बनाकर बिहार को एक राजनीतिक अस्तित्व मिला।गोलघर, हाईकोर्ट, और सचिवालय जैसी इमारतें ब्रिटिश वास्तुकला के साक्षी हैं—जो आज भी इतिहास के बीच खड़ी हैं।

फिर आया वह क्षण जिसने बिहार को पूरे भारत का नेतृत्व करने लायक बना दिया—चंपारण सत्याग्रह।महात्मा गांधी ने पहली बार अंग्रेज़ों की नीतियों को खुली चुनौती यहीं से दी।
यह वही धरती थी जिसने पहली बार भारत को सिखाया—“आवाज़ उठाना ही आज़ादी का पहला कदम है।

आजादी के बाद कांग्रेस का युग शुरू हुआ।श्रीकृष्ण सिंह बने पहले मुख्यमंत्री, और अनुराग नारायण सिंह बने उनके डिप्टी।बिहार ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को देश का पहला राष्ट्रपति दिया—और जमींदारी उन्मूलन का कानून भी यहीं से शुरू हुआ।लेकिन उसी समय एक ऐसा निर्णय आया जिसने बिहार के विकास की दिशा बदल दी — Freight Equalization Policy।इस कानून ने यह कहा कि कोयला या कोई भी खनिज देश के किसी भी हिस्से में एक समान भाड़े पर पहुंचेगा।
नतीजा?
फैक्ट्रियाँ समुद्र के किनारे चली गईं, और संसाधनों से भरा बिहार खाली हाथ रह गया।जिस राज्य ने भारत की नींव रखी थी, वही धीरे-धीरे आर्थिक पिछड़ेपन में डूबने लगा।

फिर भी, बिहार की राजनीति कभी शांत नहीं रही।यहीं से उठे वो लोग जिन्होंने सत्ता से सवाल करने की परंपरा शुरू की—जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, और समाजवाद की पहली लहर।
कांग्रेस का वर्चस्व था, लेकिन जमीन के नीचे लावा सुलगने लगा था।1950 का दशक बीता, पर 1960 के आते-आते बिहार ने वो करवट ली जिससे भारतीय लोकतंत्र की नई परिभाषा लिखी जाने वाली थी।अगला दौर, संघर्ष और क्रांति का था—जहाँ युवा सड़कों पर उतरने वाले थे, और राजनीति जनता के हाथ में आने वाली थी।

Mission Aditya

Founder – KhabarX | Student | Patriotic Youth Ambassador (VPRF) 🇮🇳 Amplifying unheard stories, questioning silence, and building journalism powered by truth, tech & youth. Purpose-led. Change-driven.

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