6 साल का आयुष खेलने निकला था। लौटकर कभी नहीं आया। 8 साल की नीलम स्कूल से नहीं लौटी। हर साल ऐसे कितने मासूम गुम हो रहे हैं, किसी को ठीक से नहीं पता। आंकड़े मौन हैं, सिस्टम खामोश है। और माँ-बाप? वो दरवाज़े की घंटी हर रात सुनते हैं, उम्मीद में…”
KhabarX की ये विशेष रिपोर्ट उन गायब बच्चों की कहानी नहीं, बल्कि उस ‘सन्नाटे की साज़िश’ की तहकीकात है, जो हर साल हज़ारों परिवारों की ज़िंदगी को निगल रही है।
आंकड़े क्या कहते हैं? (Data-driven truth)
- 2023 में सिर्फ बिहार से 11,800 से ज़्यादा बच्चे गायब हुए।
- NCRB के अनुसार 40% से ज़्यादा केस में कोई फॉलोअप नहीं होता।
- ज्यादातर केस गरीब, दलित, या ग्रामीण इलाकों से होते हैं।
📌 RTI से मिले जवाब में कई ज़िलों ने “No Data Available” कहा — यही सबसे बड़ा सच है!
क्या पुलिस जानबूझकर अनदेखी कर रही है?
- Missing report को FIR में तब्दील नहीं करना एक आम प्रथा।
- कई बार “घर से भागा होगा” कहकर केस बंद।
- Child Welfare Committees का जवाब — “हमें proper coordination नहीं मिलता।”
🎙️ नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा: “Missing child cases को priority नहीं माना जाता…”
Child Trafficking Racket – एक डरावनी परछाई
- NGO रिपोर्ट्स के अनुसार गायब बच्चों में से कई को दूसरे राज्यों में child labor, begging rackets, या sex trafficking में झोंक दिया जाता है।
- नेपाल-बिहार border एक hotspot बना हुआ है।
- गिरोहों में स्थानीय पुलिस की मिलीभगत के आरोप हैं।
Parents का दर्द – “हमें बस एक तस्वीर भी मिल जाए”
“मेरे बेटे की तस्वीर दीवार से उतर चुकी है, लेकिन दिल से नहीं।”
— सुनीता देवी, रोहतास जिला
“5 साल से दरवाज़ा नहीं बंद किया, लगता है वो आएगा…”
— शंभूनाथ, मधेपुरा
क्या होना चाहिए? (Call to Action)
- Missing child reports को तुरंत FIR बनाया जाए।
- All-India database accessible हो real-time.
- Child helpline को local police से जोड़ना अनिवार्य हो।
- KhabarX जैसी आवाज़ों को ground reporting का सहयोग मिले।
बिहार में हर गायब बच्चा सिर्फ एक केस फाइल नहीं है, वो किसी माँ का सपना, किसी बाप की नींद, किसी बहन की राखी है। सवाल ये नहीं कि बच्चे क्यों गायब हो रहे हैं…
सवाल ये है कि ये सिस्टम क्यों सो रहा है?








